इम्तिहाँ मेरी मोहब्बत को मुदाम देने हैं
दीजिए अगर आपको इल्ज़ाम देने हैं
और कौन दूसरा सितम-परस्त होगा इतना
आपकी न पर भी मुझे पयाम देने हैं
आपकी नीम-नज़र देती है मुझको सौ ग़ालियाँ
बावजूद इसके मुझे सौ सलाम देने हैं
संग उठाते-उठाते न थक जायें हाथ कहीं
आपको अभी मुझे ज़ख़्म तमाम देने हैं
‘नज़र’ से पूछ सुम्बुल के दिये हुए ज़ख़्म
आज काफ़िर को तर्क़े-इस्लाम देने हैं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००५