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मेरी ग़ज़ल

हाल तेरा कहीं मैंने तुझसे बेहतर जाना

हाल तेरा कहीं मैंने तुझसे बेहतर जाना
पर अफ़सोस कि तूने मुझे पत्थर जाना

वो महज़ इक जलन थी मेरे इस दिल की
तूने जिसे अपने दिल का निश्तर जाना

तू महरवश नहीं औरों की तरह मगर
मैंने तुझे अपनी हर निगह अख़्तर जाना

मेरे हाल पर हँसी आती है मेरे मसीहा को
ख़ुदा का यह रंग मैंने किसी से बेहतर जाना

कौन करेगा मेरी पैरवी ख़ुद मुंसिफ़ से
हर किसी ने उसे रक़ीब का दफ़्तर जाना

ख़ुदी में मग़रूर कैसे हो ख़ुदशनास भला
गर न कभी उसने मेरी आँखों को तर जाना

ख़ुदा से रश्क़ रखूँ या ख़ुद से शिकवा करूँ
मैंने सीखा नहीं इस राह के उधर जाना

थीं बहुत-सी ख़ूबियाँ मुझमें न जाने क्यों मगर
हर किसी ने मुझे ख़ुद से कमतर जाना

मेरे चार चराग़ों से रहे तेरा घर रौशन
तुम हर रथे-तीरगी से उतर जाना

मुझे ग़म था चुल्लूभर पानी के जितना
हैफ़ मैंने ज़रा से ग़म को समन्दर जाना


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००५

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

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