चाहता हूँ वो आज मुझसे ख़फ़ा हो जाए
वो मेरा अपना आज बेवफ़ा हो जाए
आरज़ू थी दोनों तरफ़ प्यार की आग की
चाहता हूँ ये आग एक तरफ़ा हो जाए
जो खा़ब सच्चा न हुआ मेरे चाहने से
चाहता हूँ वो सच्चा इस दफ़ा हो जाए
एक तूफ़ान धड़कनों में रवाँ हुआ था
चाहता हूँ गर्द आँखों से सफ़ा हो जाए
नब्ज़ जो न बुझे तो क्यों बुझाऊँ उसे
चाहता हूँ असरकार वफ़ा हो जाए
बढ़ते आते हैं उम्मीदों के काफ़िले
चाहता हूँ इस बारी कुछ नफ़ा हो जाए
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’