एक दर्द सीने में साँस लेता है
मुझको जीने की फाँस देता है
हुआ क्या क्यों मैं बदल-सा गया
क्यों दिल बारहा आस देता है
हम भूल जाएँ या याद करें उसे
हर दर्द ये एहसास देता है
हम जिस तरफ़ भी देखते हैं दोनों
तेरा साथ मुझको यास देता है
शाम आती है धुँधले-से कोहरे में
ये लम्हा साँसें उदास देता है
बहरहाल दिल में उसका ख़्याल है
वो नहीं इधर तव्वज़ु-ए-खा़स देता है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’