ज़ुबाँ की सब गिरहें खोल दो
जो भी कहना है मुँह पर बोल दो
पीठ पर न सुन पाऊँ कभी
जली कटी बातें मुँह पर उड़ेल दो
क्या फ़ायदा झूठ दायम कहो
आज ज़ुबाँ से कुछ सच भी तोल दो
ज़ख़्मों पे नमक मल दो कि
यूँ मेरी मोहब्बत का मोल दो
क्यों बाँध रखा है फंदे की तरह
गले से यह रिश्ता खोल दो
मुझे मिलता नहीं ठोकर का सबब
‘नज़र’ अंधा हूँ कि टटोल दो
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’