गर तुम हो सुम्बुल तो मैं बेक़रार क्यों हूँ
जो तुम देती हो शिफ़ा तो मैं बीमार क्यों हूँ
बरसात का मौसम आँखों से गुज़रता नहीं है
जब धूप नहीं निकली तो मैं ग़ुबार क्यों हूँ
मोहब्बत है दुनिया में कहते हैं वाइज़
यह ज़रा भी सच है तो मैं बे-प्यार क्यों हूँ
प्यार खु़दा है अगर तो मुझको भी चाहिए
जो ऐसा चाह लिया तो मैं गुनाहगार क्यों हूँ
तुम्हारी हँसी बाइस है मेरी खु़शी के लिए
जो तुम खु़श हो तो मैं दर्द का शुमार क्यों हूँ
‘नज़र’ खु़दा से गिला नहीं मुझे उसकी जफ़ा का
उसकी बेवफ़ाई पर भी मैं वफ़ादार क्यों हूँ
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’