चाँदनी रातें, चाँदनी रातें
चाँदनी रातें, चाँदनी रातें
तन को जलायें चाँदनी रातें, चाँदनी रातें
मन को भिगोयें चाँदनी रातें, उजली रातें
चाँदनी रातें, चाँदनी रातें
रात-रात भर जागें उनको ताकें
रोशनी से करें चाँद की बातें
तन को जलायें चाँदनी रातें
मन को भिगोयें चाँदनी रातें
प्यार और वफ़ा की रस्में बेकार पड़ी हैं
दिल के दरख़्तों की शाख़ें बेज़ार पड़ी हैं
कोई नहीं था इक साया था
मेरी आँखों में जो आया था
कैसे बताऊँ यार मैं किसको
जो मैंने दिल को समझाया था
कोई लम्हा महक रहा है
लायी है रात तेरी यादें
चाँदनी रातें, चाँदनी रातें
साँझ-सवेरे आँख में मेरे
ख़ाब की डाली पे तू रहती है
तन के ज़ख़्मों पर मेरी साँसों में
ख़ुशबू बनके तू बहती है
हाथों की लकीरों को खोद-खोदकर जीता हूँ
ज़हर ज़िन्दगी का घुट-घुटकर पीता हूँ
शाम-प्याला छलक रहा है
लायी है रात नयी सौग़ातें
चाँदनी रातें, चाँदनी रातें
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२