हम और तुम, तुम और हम
दोनों प्यार करते हैं
एक-दूसरे से प्यार करते हैं
जब प्यार करते हैं
तो क्यों दूर रहते हैं
आँखें तुम्हारी मेरे दिल की
चिठ्ठियाँ पढ़ लेती हैं
चुपके ही चुपके आँखें तुम्हारी
इक इशारा कर देती हैं
मतलब इशारों का मैं नहीं समझता
मसला प्यार का यूँ नहीं सुलझता
समझी क्या!
हम और तुम, तुम और हम
दोनों प्यार करते हैं
एक-दूसरे से प्यार करते हैं
जब प्यार करते हैं
तो क्यों दूर रहते हैं
आओ ज़रा बाँहों में
दिल से दिल को मिलने दो
देखो मेरी आँखों में
प्यार के दो गुल खिलने दो
यार ऐसे ही बढ़ता है प्यार
रंग ज़िन्दगी में लाता है प्यार
समझी क्या!
हम और तुम, तुम और हम
दोनों प्यार करते हैं
एक-दूसरे से प्यार करते हैं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२
One reply on “हम और तुम, तुम और हम”
ishare nahi samajhta,masla pyar ka yun nahi sulajhta.sahi kaha.pyar ke do gul khilne do,wah.sundar bhavana.