छोटी-छोटी बातें होतीं
मीठे-मीठे पल होते
छोटे-छोटे फूल चुनते
गीले-गीले पत्ते होते
ख़ुशियाँ रातभर खेलतीं
हँसी होंठों पर बैठती
तेरी आँखों को पढ़ते
जब कभी तू रूठती
ऐसा होता जो कभी
आँखों में मिसरी होती
ऐसा होता जो कभी
होंठों पर उतरी होती
छोटी-छोटी बातें होतीं
मीठे-मीठे पल होते
छोटे-छोटे फूल चुनते
गीले-गीले पत्ते होते
पुरवाई में जिस्म ठण्डाते
हाथ में हाथ गरमाते
मैं कहता शेर तुमपे
और तुम शरमा जाते
ख़ुशबू होती जिस्मों की
आँच के होते फव्वारे
बाँहों में तुम होती
और हम होते तुम्हारे
छोटी-छोटी बातें होतीं
मीठे-मीठे पल होते
छोटे-छोटे फूल चुनते
गीले-गीले पत्ते होते
सब्ज़ मौसम ख़ाली दिन
तेरी बातें तेरे बिन
रातें गुज़रती अब मेरी
अर्श के सितारे गिन
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२