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मेरा गीत

कहीं दिलों के गुलाब खिले हैं

कहीं दिलों के गुलाब खिले हैं
दो सौंधे जिस्मों की ख़ुशबू आती है
आँखों में चाँद चमक उठा है
इस नूर से और बे-तस्कीं होती है

देख रहा हूँ तेरे चेहरे को
नज़र हटती नहीं जी भरता नहीं
तुम हाथ छुड़ा भी लो तो क्या
तुमको बाँहों में जकड़ ही लूँगा

तुमसे हैं जो अरमान उगे हैं
इश्क़ का ज़ोर-ज़बर है पीछे लगे हैं
ख़ानाबदोश तुझपे आ टिका है
किसी ठिकाने पर ऐसा न लगा है

दरख़्तों पर गुलाबी बेलें चढ़ी हैं
हमने इश्क़ की आयतें पढ़ी हैं
आँखों में छुपाओ नहीं हर्फ़ नीले
गिर जाने दो ख़िज़ाँ के पत्ते पीले

हुस्न शरर है इश्क़ जगाता है
लग जाये यह आग कौन बुझाता है
वस्ल के ख़्यालों में डूबा हूँ
हिज्र मुझे सारी रात जगाता है


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

3 replies on “कहीं दिलों के गुलाब खिले हैं”

bahut sundar,ishq ki aag to bujhaye na bujhi hai,samandar ke samandar baha kar dekhe.
vasl ur hijr ka arth nahi samjha,ab urdu to aati nahi.

वस्ल(vasl)=मिलन
हिज्र(hijr)=बिछड़ना

आज सन् २००२ की डायरी पूरी तरह ब्लॉग हो गयी है, अब तो कठिन शब्दों की भरमार लगेगी, क्योंकि २००३ से ही मैंने उर्दू में अपनी रुचि बढ़ायी थी| इसीलिए मैंने अपने ब्लॉग पेज पर उर्दू-इंग्लिश शब्दकोश दे रखा है|

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