दिल में फिर वही दर्द उठा है
तेरा हिज्र मौत से बड़ी सज़ा है
ये रक़ाबी माहताब की सर्द पेशानी
जैसे साँसों में बर्फ़ का टुकड़ा है
इक ख़ार चुभा है कब से सीने में
वो संगदिल आज मेरा ख़ुदा है
गुले-पलाश की तरह मेरा जीवन
जुदा ख़ुशबू से ताउम्र जुदा है
‘नज़र’ को जहाँ तुम छोड़ गये थे
वह आज भी उसी मोड़ पे खड़ा है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२