हल्के-हल्के
क़दमों की आहट
सुनायी देती है
दिल समझता है
कि तुम
आ गये हो
ऐसे कुछ
जलता है
इन पलकों के नीचे
कि तुम
सारे ख़्वाब
जला गये हो…
टूटा नहीं है
अभी तक
डोरी-सा तना
मेरा ख़्वाब
क्योंकि दिल में
आज भी
सुनायी देती है
तेरी आवाज़
यूँ ही कभी
मैं जब घूमता हूँ
अपने हाथों की
लकीरों में
तुम्हें ढूँढ़ता हूँ
तेरे बिना
मेरी ज़िन्दगी
एक कोरा काग़ज़ है
जो लिखा था
उसे तुम
एक पल में
मिटा गये हो
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९