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मेरी नज़्म

ख़याल जब कभी

ख़्याल जब कभी
आपका आता है
तारों को
निहारतें हैं
गर दिन हो तो क्या
आँखें मूँदकर
आपको देख लेते हैं

एक आप ही तो थे
जिनसे हमने
मोहब्बत की थी
आने वाले
तो हज़ार आए
हमारी ज़िन्दगी में
मानते हैं हम
अपनी ख़ता…

क्या बताएँ आपको
कितनी मजबूरियों में
रहा करते हैं,
एक-एक लम्हा जो
गुज़रता था
मेरे दिल का
हाल कहता था

ये बात और रही
कि हमारी मोहब्बत
आपके दरवाज़े
दस्तक न दे पायी

सच कहें
जितना जिस चीज़ को
चाहते हैं
उतना ही उससे
दूर होते रहते हैं
इस बात में
बहुत सच्चाई है
तभी तो आप हमसे
इतना दूर रहते हैं

ख़्याल जब कभी
आपका आता है
तारों को
निहारतें हैं
गर दिन हो तो क्या
आँखें मूँदकर
आपको देख लेते हैं

बहुत कोशिशें करता हूँ
दिनभर
पर आपको
भूल नहीं पाता
ऐसा क्या था आप में
जो आज
दूसरों में ढूँढ़ता हूँ

समझना थोड़ा मुश्किल है
शायद ग़लत कह गया
बहुत मुश्किल है…
आप आऐंगे
एतबार किसी को हो न हो
पर हमें है
इंतज़ार किसी को हो न हो
पर हमें है

शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

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