एक ख़ाब टाँक दो आँखों में
कि आज मैं ज़हर पी लूँ
बेवजह ही वजह दे दो
इस मोड़ पे ठहर भी लूँ
रात ख़ाब में मिले थे जब
तुमने इक़रार न किया था
मैं क्या समझूँ ख़ामोशी को
तुमने इन्कार न किया था
गुस्ताखियाँ करता है
क्योंकि यह दिल नादाँ है
तेरी चाहत में उम्र काट दूँ
ज़िन्दगी से ऐसा वादा है
उस रोज़ देखा था तुमको
दीवाली की हसीन रात में
बड़ी-ही शामीन थी तुम
जैसे चाँद स्याह रात में
कि देखने की तुम्हें फिर ख़्वाहिश है…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२