इक किताब हूँ मैं
जिसे खु़द लिखा करता हूँ मैं
सोचता हूँ, जब बैठता हूँ अकेला कभी
कहाँ से मैं शुरू हुआ था
कहाँ पर जाकर ख़त्म हूँगा
एक-एक पन्ना कोरा था
जो मैंने अब भरा है
एतबार था मुझको
आएगा वो भी जिसके लिए हूँ मैं
इक किताब हूँ मैं
जिसे खु़द लिखा करता हूँ मैं
सोचता हूँ, जब बैठता हूँ अकेला कभी
वो जो मैंने लिखा था
क्यों उसे जला दिया
जो लिखा था याद में किसी की
क्यों उसे मिटा दिया
चाहत है ठहरी हुई
आएगा वो भी जिसके लिए हूँ मैं
इक किताब हूँ मैं
जिसे खु़द लिखा करता हूँ मैं
सोचता हूँ, जब बैठता हूँ अकेला कभी
क्यों मैंने तुमको देखा
देख के तुझमें क्यों रह गया
उन यादों का मैं क्या करूँ
उन परछाइयों में कब तक रहूँ
कैसे हो मुझको यक़ीं
आएगा वो भी जिसके लिए हूँ मैं
इक किताब हूँ मैं
जिसे खु़द लिखा करता हूँ मैं
सोचता हूँ, जब बैठता हूँ अकेला कभी
कुछ जो लिख चुका हूँ कभी
क्या मतलब था उन बातों का
कैसी वो राहें थीं
कैसी थीं वो इबादतें
जिनको आज भी ढूँढा करता हूँ मैं
आएगा वो भी जिसके लिए हूँ मैं
इक किताब हूँ मैं
जिसे खु़द लिखा करता हूँ मैं
सोचता हूँ, जब बैठता हूँ अकेला कभी
मोहब्बत क्या है? क्यों है?
क्या तुम इससे वाक़िफ़ थे
यह जवाब चाहता हूँ
इंतज़ार कभी, कभी टूटा-सा हूँ मैं
तुमको याद है वो चेहरा
आएगा वो भी जिसके लिए हूँ मैं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००