एक मुलाक़ात की इल्तजा है
उससे दुआ है
वह क्यों नहीं मिलता मुझसे
उसे क्या शुबा है
मुझ मुरीद को न क़रार है
यह क्या धुँआ है
साँस बदन से जुदा-जुदा है
मुझे क्या हुआ है
मैं जिसके लिए मरना चाहता हूँ
वो मेरा खु़दा है
सनम मेरा गुले-सुम्बुल है
वो दिलरुबा है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००५
2 replies on “एक मुलाक़ात की इल्तजा है”
बहुत खूब.
शुक्रिया, संकृत्यायन जी!