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मेरी नज़्म

पिछला कुछ भी बदला नहीं जा सकता

बीते दिनों की गलियों में जब पाँव पड़ते हैं तो
अपने आपको तुझमें ढूँढ़ने लगता हूँ मैं
दिल के ज़ख़्म बर्फ़ की तरह जमने लगते हैं
और उदासियों की नज़्म उन्हें गरमाती रहती है…

मैं जानता हूँ पिछला कुछ भी बदला नहीं जा सकता
फिर भी ‘काश!’ की परछाईं मेरा पीछा करती है
काश यूँ न होता, काश वैसा न किया होता, काश!
बस यही आवाज़ें मन में गूँजती रहती हैं…

सन्नाटों में झींगुर जाने किसको सदा देते हैं
चाँदनी ज़मीन पर जाने क्या तलाश करती है
मैं बंद कमरे में बैठा खिड़की से बाहर देखता हूँ
तेरी यादें गली में टहलती नज़र आती हैं मुझे…

मेरा उसी राह से आना-जाना है जहाँ तुम्हें देखा था
आज भी नम आँखों में माज़ी की हरी काई जमी है
वहम ही सही मगर दो पल को तेरा साथ मिल जाता है
और तन्हाई के पन्नों पर तेरी तस्वीरें बन जाती हैं…

मेरी ज़िन्दगी में जितने भी सफ़्हे तुमने लिखे थे
उनके हर्फ़ आज भी मैं तन्हाई के साथ चुनता हूँ
कच्ची स्याही से लिखे वह लम्हों में बुने हर्फ़,
लाख कोशिशों के बाद भी मैं भूल नहीं पाया हूँ…

मेरा नाम भूल जाओगी, मेरे ख़त खो जायेंगे तुमसे
शक़्ल तक न याद आयेगी, न मेरी कोई बात
वक़्त की गर्द में तुम मेरे लिए आँखें मूँद लोगी
शायद कभी फ़लाँ कहकर भी न याद करो मुझको…

मुझको भूल जाने वाले लोगों को मैं भूल जाता हूँ
भीड़ में उनके चेहरे तक नहीं याद रखता मैं
तेरा चेहरा ही जानता था, नाम क्या होगा? परवाह न थी
तेरा नाम भूल जाऊँ शायद पर तुझे कैसे भूलूँगा…

मैं हसीन नहीं मगर वह तो फ़िल-हक़ीक़त हसीन होगा
जिसे तुम चाहती हो, जिसके लिए साँस लेती हो तुम
गो मैं यकता हूँ, ज़माने में मुझसा कोई दूसरा नहीं
फिर क्यों लगता है मुझे वह मुझसे बेहतर होगा…


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००५

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

2 replies on “पिछला कुछ भी बदला नहीं जा सकता”

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