तेरी चौखट पे
एक रोशनी देखा करते थे
अब न वो दिखती है
और न तुम…
रुसवा ज़िन्दगी के पल हुए
तेरी खु़दाई रंग लायी
एक रिश्ता बाँधकर
तुमने उसे तोड़ दिया…
क्या तुम्हें हम बेवफ़ा मान लें
या इसे वक़्त की रज़ा समझें
रात की घनेरियाँ छायी हैं
और सिर्फ़ एक सितारा नज़र आता है…
चलती है जो नब्ज़ तेरे बिना
उसमें ज़िन्दगी कहाँ है
हज़ार ज़ख़्म हों जिस्म पे
उनसे दर्द का बढ़ना कहाँ है
एक पल में वह
सालभर का रिश्ता तोड़ गये
जोड़े कई ग़म
और मेरा आशियाँ तोड़ गये
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२