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मेरी नज़्म

ज़ुलेख़ा

तुम्हें कई बार देखा है मैंने
सिंदूरी शाम पे रात मलते हुए
कई बार चाँद की तरह
चेहरा छुपा लेती हो
और कई बार पाया है
नदी किनारे तन्हा बैठे हुए

कुछ बातें भूली बिसरी याद करती हो
बरसे फिर वो चाँद की मिसरी
फ़रियाद करती हो

वो महकी हुई संध्या आज भी होगी
पलाश के फूलों में
खु़शबू भरने की खा़हिश आज भी होगी

हमेशा से खा़ब में तुम्हें देखा है
खा़हिश थी जिसकी तू ही वो ज़ुलेखा़ है
बेवजह ही धूप की परवाह करती हो,
खु़द ही गिला खु़द ही शिकवा करती हो

उन पलकों में नमी आज भी होगी
उनमें किसी दिलबर का खा़ब रखने की
खा़हिश आज भी होगी…

तुम्हें कई बार देखा है मैंने
सिंदूरी शाम पे रात मलते हुए…


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

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