एक वक़्त की बात है
ये वो लम्हा था जिससे महकी मेरी रात है
आँखों ने छुआ था इक हसीन चेहरे को
मुझे आज तलक वो दिन याद है…
ये पलभर की मुलाक़ात थी
निगाहों ने पढ़ी ख़ामोशी से दिल की बात थी
उसने तो न दिया था कभी अपना हाथ हमें
और न हमने कभी उसे थामा ही था
कहते थे सभी यही
कि वो हुस्ने-नूरे-मोहब्बत का चिराग़ है
एक वक़्त की बात है
ये वो लम्हा है जिससे महकी मेरी रात है
निगाहों ने मगर ये वादे तो न किये थे कभी
कि फिर मिलेंगे इसी मोड़ पर और ये मौसम भी
थोड़े वक़्त का साथ था
इसीलिए थोड़े-से तन्हा दिखते हैं अभी
महकती शाम अगर रस्म है
तो मोहब्बत में सौंधी-सौंधी सुबह रिवाज़ है
एक वक़्त की बात है
ये वो लम्हा है जिससे महकी मेरी रात है
झूले हैं रोज़ यादों में हमने वक़्त के झूले
ये दर्द चाहता है तेरी यादों का आसमाँ छू ले
जो पहुँचा है दिल से दिल तक ये वही साज़ है
आँखों ने छुआ था इक हसीन चेहरे को
मुझे आज तलक वो दिन याद है…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२
One reply on “एक वक़्त की बात है”
gehrai se rakhe bhav,wo lamha sada yaad hota hai,very very impressive..