हमने आसमाँ से टूटके
गिरते सितारे को
ज़मीं पे आते देखा है
आसमाँ पे था तो चमकता था
ज़मीं पे है तो दहकता है
फ़र्क़ है बस थोड़ा-सा
‘कितना है?’ इतना है!
जाओ उठा लाओ उसे…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
हमने आसमाँ से टूटके
गिरते सितारे को
ज़मीं पे आते देखा है
आसमाँ पे था तो चमकता था
ज़मीं पे है तो दहकता है
फ़र्क़ है बस थोड़ा-सा
‘कितना है?’ इतना है!
जाओ उठा लाओ उसे…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३