मैं तेरे इश्क़ की छाँव में जल-जलकर
कितना काला पड़ गया हूँ, आकर देख
तू मुझे हुस्न की धूप का एक टुकड़ा दे!
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
मैं तेरे इश्क़ की छाँव में जल-जलकर
कितना काला पड़ गया हूँ, आकर देख
तू मुझे हुस्न की धूप का एक टुकड़ा दे!
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
2 replies on “कितना काला पड़ गया हूँ”
रंगीन फूल हजारों हजार मिलते है
स्याह गुलाब मगर मुश्किलों से मिलते है
kya baat hai brij saahab!