बहुत बिलखता सीने में रात दर्द
अगर न करता मुझसे बात दर्द
बिखरी रही चाँदनी सारी रात सर्द
भिगोते रहे करके बरसात दर्द
आया बहार के बाद मौसमे-ज़र्द
पिघलाता रहा मेरे जज़्बात दर्द
कड़ी धूप खिली तो उड़ी राहे-गर्द
साँसों में पिरोये मैंने दिन-रात दर्द
दिल में वीराने के सिवा और कुछ नहीं
नज़र की तुझे यह कायनात दर्द
कोई चाहता है भला किसी को इतना
अबस है उम्मीदे-नजात दर्द
‘नज़र’ ज़िन्दगी के मानी आज समझा
है मानिन्दे-क़ैदे-हयात दर्द
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३