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मेरी ग़ज़ल

है मानिन्दे-क़ैदे-हयात दर्द

बहुत बिलखता सीने में रात दर्द
अगर न करता मुझसे बात दर्द

बिखरी रही चाँदनी सारी रात सर्द
भिगोते रहे करके बरसात दर्द

आया बहार के बाद मौसमे-ज़र्द
पिघलाता रहा मेरे जज़्बात दर्द

कड़ी धूप खिली तो उड़ी राहे-गर्द
साँसों में पिरोये मैंने दिन-रात दर्द

दिल में वीराने के सिवा और कुछ नहीं
नज़र की तुझे यह कायनात दर्द

कोई चाहता है भला किसी को इतना
अबस है उम्मीदे-नजात दर्द

‘नज़र’ ज़िन्दगी के मानी आज समझा
है मानिन्दे-क़ैदे-हयात दर्द


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

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