कितने और मेरे इम्तिहान लीजिएगा
क्या अजल से पहले ही जान लीजिएगा
हर इल्तिजा ठुकराते हो ख़ुदा की तरह
कभी आँखों की हिना भी पहचान लीजिएगा
दावा नहीं कि हूँ क़ैसो-फ़रहाद लेकिन
न कुछ कम मेरे इम्तिहान लीजिएगा
यूँ तो सनम लेते हैं दिल और जाँ दोनों ही
साथ-साथ आप मेरे अरमान लीजिएगा
ऐसा नहीं मुझको जीना तेरे बग़ैर अज़ीज़
करीएगा वही जो दिल में ठान लीजिएगा
मैं तो मर चुका जानाँ तुम्हारे इश्क़ में
मारने को मुझे न ग़ैर के एहसान लीजिएगा
तपिशे-दिल न मिटाये बने गिरियाँ से
कभी आँसू आँच के दरम्यान लीजिएगा
‘नज़र’ की तरह पहले अपनी सुनिए
फिर एक रोज़ मेरा कहा मान लीजिएगा
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३