तू ज़िन्दगी से ज़ियादा अज़ीज़ है मुझे
वो तुम ही हो जिससे इश्क़ है मुझे
मैंने जो कभी देखा किसी को तुम ही दिखे
मानी यह कि तेरी ख़ाहिश है मुझे
पौष की सर्द भीगी रात आँच आँखों में
तेरे तस्व्वुर का लम्स है मुझे
उम्मीद की इक शमा जला रखी है
तेरे क़रीब होने का एहसास है मुझे
डूबा हुआ हूँ दिन रात तेरे ख़्यालों में
बिन तेरे मौत से परहेज़ है मुझे
क़रार ले के बेक़रारियाँ दे दीं मुझे
अश्कों से तर आँख भी खुश्क है मुझे
जो तुम्हें चाहतों से ज़रा भी देखता है
हर उस शख़्स से रश्क़ है मुझे
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३