दिल में राज़ छुपाये बेइन्तिहाँ
रोज़ो-शब देते रहे इम्तिहाँ
कोई न आया दोस्त बनके मेरा
क़िस्मत रही क्यों न मेहरबाँ
लाख चाहे तुमको कोई क्योंकर ना
मगर मुझसा कोई चाहेगा कहाँ
फ़ासले से मुहब्बत नहीं मिटती
इश्क़ सदा रहता है दर्मियाँ
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
दिल में राज़ छुपाये बेइन्तिहाँ
रोज़ो-शब देते रहे इम्तिहाँ
कोई न आया दोस्त बनके मेरा
क़िस्मत रही क्यों न मेहरबाँ
लाख चाहे तुमको कोई क्योंकर ना
मगर मुझसा कोई चाहेगा कहाँ
फ़ासले से मुहब्बत नहीं मिटती
इश्क़ सदा रहता है दर्मियाँ
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’