हर तरफ़ नाउम्मीदी के घेरे रहते हैं
मगर फिर भी उम्मीदों के फेरे रहते हैं
शायद तुम न समझो मुझे अपने क़ाबिल
मगर फिर भी खा़ब आँखों में तेरे रहते हैं
बहुत मुश्किलें हैं तुम्हारी चाहत में
मगर फिर भी ज़हन में सवेरे रहते हैं
मुतमइन मैं बहुत खु़द से रहता हूँ
मगर फिर भी जवाँ हौसले मेरे रहते हैं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’