मैं तुमसे हूँ दूर तो तनहाई में मरा जाता हूँ
इक आस खींचती है मुझे दरवाज़े तक आ जाता हूँ
दीवानापन मुँहज़ोर तूफ़ान है थमता नहीं
मैं अपनी मोहब्बत में बेहदी तक बहा जाता हूँ
इस तलबगार के तुम तलबगार हो जाओ
मैं तुम्हारे पैरों में मानिन्द आसमाँ हुआ जाता हूँ
हर खा़हिश का हासिल तुम सिर्फ़ तुम हो
मैं अपने हासिल को माफ़िक़ आसमाँ फैला जाता हूँ
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’