जब भी देखता हूँ तेरी तस्वीर
तो यूँ लगता है कि उस रात
ज़मीं पर चाँद उतर आया था
पहले तो दूर-दूर बैठा रहा
मैं पास गया तो शरमाया भी
वह उसेक बात पे मुस्कुराया था
चेहरे पर हिजाब निगाहों पर हया
लबों पर लफ़्ज़ रुके हुए लेकर
वह कल भी मेरे पास आया था
उसके दामन पे दाग़ बताते थे लोग
मैं वह सारे दाग़ ज़ुबाँ पे रख
उससे नज़र हटा के घर आया था
जा तुझे माफ़ कर दिया मैंने
अगर तुझसे हुआ हो
कोई ज़ख़्म मेरे जिस्म या रूह पर
आज फिर देखता हूँ तेरी तस्वीर
तो यूँ लगता है कि उस रात
ज़मीं पर चाँद उतर आया था
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२