जैसे ज़िन्दगी वीरान है
जैसे ज़िन्दगी बेनाम है
तू मेरी बाँहों से दूर है
तू निगाहों का नूर है, मेरे लिए
जैसे चलती है धड़कन
जैसे होती है कम्पन
जैसे आती है यह सुबह
जैसे जाती है हर शाम, मेरे लिए
घड़ी-घड़ी तेरा इन्तिज़ार
घड़ी-घड़ी मैं तेरा राहदार
साँसें ढूँढ़ती हैं तेरी ख़ुशबू
आँखें ढूँढ़ती हैं तेरा ख़ाब, मेरे लिए
आ जाओ तुम या फिर
आने दो अपने पास मुझे
यह दूरियाँ सिमटने दो
यह डोरियाँ उलझने दो, मेरे लिए
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९