जो तेरी राह से गया लौट के आये ज़रूरी नहीं
हम रहें ग़मज़दा उसके लिए ज़रूरी नहीं
दिल बदल जाए है बस फ़िक्रे-नज़र से
जाने वाला भी रखे फ़िक्र तेरे लिए ज़रूरी नहीं
तड़पती रही है मौत जैसे आने के लिए
ऐसी तड़प हो उसको तेरे लिए ज़रूरी नहीं
चाँद की लज़ीज़ मिसरी भी ज़हर की डली है
ज़हर ये पी रही हों उसकी रातें ज़रूरी नहीं
जिसे माँगा है तूने ख़ुदा से अपनी दुआओं में
तू सबब हो उसका जीने के लिए ज़रूरी नहीं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२