कभी तुम घर आओ ना
नाम से मुझे बुलाओ ना
हमें यह वादा दे दो
आओ तो फिर जाओ ना
अपनी हँसी से यह घर सजा दो
प्यार के फूल दिल में खिला दो
दीप मन में जलाओ ना
कभी तुम घर आओ ना
नाम से मुझे बुलाओ ना
फेरे यह ऐंवे कब तक चलेंगे
जिस्म और जान कब मिलेंगे
रात अंधेरी बुझाओ ना
कभी तुम घर आओ ना
नाम से मुझे बुलाओ ना
मौसम नया मुस्कुराने लगा है
रोशनी एक नयी उगाने लगा है
शाम कोई सुलगाओ ना
कभी तुम घर आओ ना
नाम से मुझे बुलाओ ना
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३