कहाँ से आयी है ये ख़ुशबू
यहीं कहीं है तू
ये पैग़ाम लायी है ख़ुशबू
तेरी ख़ुशबू, तेरी ख़ुशबू…
महक रही है हवा
बहक रही है फ़िज़ा
ऐसी मदहोशी है
जैसे तूने मुझे छू लिया हो
ऐसी सरगोशी है
जैसे तूने कुछ कह दिया हो
अब न छिपा,
दिखा अपना चेहरा…
यहीं कहीं है तू
ये पैग़ाम लायी है ख़ुशबू
तेरी ख़ुशबू, तेरी ख़ुशबू…
मीठा-मीठा-सा ग़म है
सच है या वहम है
तू है या कोई और है
दिल पर न कोई ज़ोर है
धड़कने लगा है
तड़पने लगा है
इसे ऐसे धड़का के न जा
मुझे यूँ तड़पा के न जा
दिल में समा जा
सामने आ जा…
यहीं कहीं है तू
ये पैग़ाम लायी है ख़ुशबू
तेरी ख़ुशबू, तेरी ख़ुशबू…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२