कहते हैं मेरा इश्क़ एक नुक़्स* है
कुछ नहीं है ख़ाली आईना है अक्स है
मुझे इक ख़ाब की तरह मिला था जो
मेरे अफ़साने का किरदार है शख़्स है
अहदे-उम्मीद में जवाँ हुआ था मैं
उससे दिल की इक तड़प है वक़्त है
जिसके लिए क़बूल किया आवारापन
जाना है वो कमबख़्त है बदबख़्त है
उसे ख़ाक उम्मीदो-वफ़ा मेरी कोई
उसका दिल बहुत संग है सख़्त है
अपनी तक़दीर जिसे हमने समझा
वह बहुत मतलबी है ज़िश्त^ है
जिसके लिए रोज़ रात चाँदनी उगायी
वो कह गया ये हमबज़्म है मुफ़्त है
*ग़लती [लोग प्राय: इसका अर्थ नक़्स(=कमी) लेते हैं]
^बुरा
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२