कौन मुझसे बड़ा मेरा रक़ीब होगा
किसके हाथों में मुझसा नसीब होगा
जिसने बदला ख़ुद को अपने लिए
कौन इतना ज़ियादा ख़ुद के क़रीब होगा
जिसने जीता जहाँ को अपनी तरक़ीब से
कौन यहाँ ऐसा शंहशाहे-तरक़ीब होगा
दबे जिस मुट्ठी में राज़े-फ़ुर्क़त सभी
उसका दिल भी कितना अजीब होगा
जिसने जीवन को इक अधूरा सपना जाना
कौन यहाँ उसके जितना ग़रीब होगा
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२