वो हर शख़्स मेरे प्यार को समझा
जिसने प्यार खोकर ख़ुद को समझा
एक तसलीम जो ख़ुद को मिटा चुकी
उसने आज मेरी अहमियत को समझा
रोज़ाना जब नींद बह जाये मेरी आँखों से
सूखे हुए आँसू ने अपनी औक़ात को समझा
बुझ-बुझ के जली शमा महफ़िल में
पतंगे ने उसके इश्क़ की हद को समझा
मिट गया जो बड़े शौक़ से दीवाना होकर
वो दिल से मेरी तक़रार को समझा
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२