हसरते- दीदार मैं कैसे छोड़ दूँ
अपना दिल अपने हाथों कैसे तोड़ दूँ
जान हो तुम ज़ीस्त है तुमसे यारा
दामने- ज़िन्दगी मैं कैसे छोड़ दूँ
एक दरया इन आँखों से बहता है
बेवज़ह रुख़ इसका मैं कैसे मोड़ दूँ
तेरा जो खा़ब आँखों में सजा रखा है
बतलाओ तो वह खा़ब मैं कैसे तोड़ दूँ
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’