मेरी क़िस्मत से तेरी क़िस्मत के पुरज़े फट गये
चंद रोज़ मेरी उम्र के बचे थे सो घट गये
है ग़ैर से लगाव तुमको’ मुझसे लाग इस तरह
देखा जो मुझे रू-ब-रू आते ग़ैर के बदन से सट गये
वाह रे अल्लाह तेरी दुनिया में देखे सैकड़ों मैंने
कुछ मेरे दुश्मन बने कुछ मेरी राह से हट गये
दिखायी मुझसे तुमने यूँ मोहब्बत’ तेरी अदा है
आये मेरे लब तक’ चूम के हवा को पलट गये
ख़ुशियों के चंद टुकड़े जो मेरी ज़ेब में बचे थे
बाँटते-बाँटते दूसरों के साथ वो भी सब में बँट गये
सदाए-दुआ दिल की हूक बनके उठती है आज
क्यों तुम न ब-वक़्ते-सितम ख़ुदा की चौखट गये
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४