हमें आज भी रोज़े-जज़ा का इंतज़ार है
कल भी था आज भी तुमसे प्यार है
ख़ाहिशें पलट-पलट के देखती रहीं
सिवा तेरे कुछ न मुझको दरकार है
जगह-जगह वही वीरान मंज़र हैं
तेरी आँखों में सिमटी हुई बहार है
ऊदे हुए तन से तेरी ख़ुशबू आती है
तरसते मन में तेरी यादों की फुहार है
फिर है चमन में महकी हुई हवा
दिल हुआ तेरे प्यार में बेक़रार है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४