बहुत उदास हूँ मुझको गले से लगा लो
यह दर्द यह एहसास मिटा दो
गिरता-पड़ता हूँ दर-ब-दर सनम
तुम्हारा इश्क़ हूँ कि मुझको सँभालो
बहुत जागा हूँ मैं तुम्हारे ख़ाबों में
अपनी नहीं न सही मौत की बाँहों में सुला दो
वो ख़त आज भी हैं मेरे पास जो तुम्हें…
भेजे नहीं कि मेरे अरमान जला दो
रहम की ख़ाहिश नहीं मुझको तुमसे
बेतरह सही बेतरह ही फ़ैसला दो
मैं न भूल पाऊँगा तुम्हें कभी भी
तुम अपनी जानो चाहो तो मुझको भुला दो
यह क्या वही मोहब्बत है मेरे करीम
है गर तो मुझको मोहब्बत का सिला दो
बरसों का फ़ासला और जिस्मों की दूरियाँ
वक़्त के इस मोड़ पर उससे मिला दो
नहीं देते नज़र को सुकूनो-सबात तुम
हूँ तीरगी में तो यह दिया भी बुझा दो
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४