की नहीं जाती अब किसी से उल्फ़त
न कल पड़ रही है न दिल को राहत
अंदाज़ कह रहे हैं वो बेग़ाना हो गया
न दे कोई मुझे उससे निस्बत
सब मिल रहे हैं माशूक़ से अपने
मुझे मिली है तन्हाई और फ़ुरक़त
वो था तो मेरे चमन में बहार थी
कब के हुए दोनों इस जा से रूख़सत
जी उचट गया दीनो-दुनिया से मेरा
अब न कोई दोस्ती न कोई चाहत
‘नज़र’ मैं क्या समझाऊँ तुम्हें
हम भी करते हैं किसी से महब्बत
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’