कोई है इस दिल में पर साथ में नहीं है
वह मेरा जाने-जिगर, वह मेरा हमसफ़र
जिससे मिली थी नज़र वह कहाँ खो गयी है
उनकी यादों के सब साये धुँधले पड़ गये हैं
दिल के अरमाँ इस ज़मीं में जड़ गये हैं
किसी को पता नहीं है वह कहाँ खो गयी है
कोई है इस दिल में पर साथ में नहीं है…
सिर्फ़ नज़रों ही नज़रों में जिनसे हम मिले
चलने लगे उसके साथ दिल के सिलसिले
दिल में उनका बसर, खोजती उनको नज़र
जाने कब कहाँ मिलें, जाने कब गुल खिले
आज बहारों के सभी मौसम लौट आये हैं
डाकिये से संदेशे हमने उन्हें कहलवायें हैं
किसी को पता नहीं है वह कहाँ खो गयी है
कोई है इस दिल में पर साथ में नहीं है…
कोई तस्वीर भी तो नहीं उनकी हमारे पास
देख लें जिसको हम कभी जब हो जी उदास
दो बातें भी तो उन्होंने हमसे कभी की नहीं
जिनको सोचकर काट लें हम यह ज़िन्दगी
कोई है इस दिल में पर साथ में नहीं है…
वह मेरा जाने-जिगर, वह मेरा हमसफ़र
जिससे मिली थी नज़र वह कहाँ खो गयी है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९