मैं क्यों इस तक़लीफ़ से गुज़र नहीं पाता
हर शै सिवा कुछ उससे नज़र नहीं आता
ख़्याल उसका बादल के पीछे चाँद जैसा है
सामने आकर भी सामने मगर नहीं आता
चुभता है दिल में किसी का किसी से इश्क़
आता है मेरी आँखों में गुहर बाहर नहीं आता
शाम की बातें, चाँद के किस्से, अनकहे हर्फ़
वक़्त की तरह कुछ भी ठहर नहीं पाता
मैं किसके इंतिज़ार में इस तरह बैठा हूँ
क्यों यह लम्हा बिखर नहीं जाता
कुछ उम्मीदें, थोड़ा शौक़, अधूरे अफ़साने
कुछ इसके सिवा इस क़दर नहीं आता
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’