ये तो कहोगे न सूरत न शक़्ल चले आये
मोहब्बत और तुमसे करेंगे बड़े आये
बड़े नाज़ से ज़ुल्फ़ें झटक के मुँह बना लोगे
सखी से कहोगे खा़क़ दीवाना भाड़ में जाए
तेरी नख़वतो-नफ़रत से कब एतराज़ हमें
हमारी मोहब्बत के चरचे होंगे जाए-जाए
तुमको न दीवाना करूँ तो दीवानगी को आग लगे
भूल के मेरे पास आओगे अपने पराये
माना शक़्ल से कुछ कमतर हैं दिल से नहीं
तुमको मनाने को ही इतने फेरे हैं लगाये
कुछ दिन की जुदाई और सही प्यार में
हिज्र के दिन यूँ गये वस्ल के दिन यूँ आये
संगदिल कितने ही बनो तुमको मोम कर देंगे
सच्चे प्यार से तो फ़ौलाद तक पिघल जाये
खु़दा की रहमत सदा बंदे पर बनी रहे
मैं चाहूँ तुझे और तू मुझे मिल जाए
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’