Categories
मेरी ग़ज़ल

मंज़िल के पहुँचने से वरे

मंज़िल के पहुँचने से वरे क़ाफ़िला दे छोड़
ऐ दिल समझ इन हमसफ़रों का गिला दे छोड़
*

सवाब करता है किसके लिए तू ‘नज़र’ जमा
तू करना दोस्तों और ग़ैरों के साथ भला दे छोड़

साथ रहना सीख ले तू बहारे-चमन के साथ
तू इस दिल की ये वीरानो-बेज़ार ख़ला दे छोड़

क्या मिलता है तुझको राह की गर्द के साथ
मुझे जन्नत मिले जो इश्क़ की बला दे छोड़

न कर तू शिक़वा किसी से न कर तू शिक़ायत
तू शबो-रोज़ का हर नया मरहला दे छोड़

दुआ कर दुआ रोज़ मस्जिदो-नमाज़ में तू
तुझे खु़दा से माँगना ‘नज़रे’-मुब्तिला दे छोड़

* इस ग़ज़ल का मतला शायर मिर्ज़ा रफ़ी ‘सौदा’ (वर्ष: 1711-1781) है|


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *