मेरा दर्द मेरा दु:ख मेरा अपना है
बाक़ी सब झूठ है यह सच्चा सपना है
कल तक लबों पर उसके लिए दुआ थी
आज दुआ में थोड़ा कुछ हिस्सा अपना है
मैं आज चली हूँ नयी मंज़िल की तरफ़
आज मेरी आँखों में एक नया सपना है
बीते हुए लम्हों को कैसे भूलेगा कोई
उसमें तो एक अधूरा रिश्ता अपना है
जादू का खेल है महब्बत कैसे बचते
क्या करें अब यह टूटा हुआ सपना है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३