किस तरह भुलाऊँ तुमसे अपनी मोहब्बत
रग रग में धड़कती है तुम्हारी मोहब्बत
वह तेरा छत पे दिखना कभी, कभी चौखट पे
घर कर गयी दिल में तुम्हारी मोहब्बत
तुम्हें घर के सामने से आते-जाते देखना
बहुत बेक़रार है आज तक मेरी मोहब्बत
दीपावली की रात का मंज़र आँखों में है आज भी
उन दीपों की तरह कर दो रौशन मेरी मोहब्बत
घर आयीं तुम और जान-पहचान भी न हुई
हाय ‘नज़र’ को ज़ख़्म दे गयी तुम्हारी मोहब्बत
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४