फिर उठी आँखें तुम्हारी फिर सुबह हुई
जी उठी हर शय जिधर तुम्हारी निगाह हुई
तुमने हमें देखा किस क़त्ले-अदा के साथ
मेरी हर साँस हर दम पे ज़िबह हुई
तुमने जो देखा मेरी इन निगाहों में सनम
तेरे दिल से मेरे दिल को इक नयी राह हुई
तुम गये इस शहर से मैं अकेला रह गया
मेरी मोहब्बत फ़ना हर तरह हुई
तुम्हें देखकर जीतता था मैं ज़माने को
कि तू साथ है मेरे तो यह दुनिया फ़तह हुई
मैं क्यूँ रहूँ ताउम्र मंज़िले-रह पे
आज फिर मुझको तेरे दीदार की चाह हुई
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४