रात गहरी और गहरी हो रही है
चाँद का भी कुछ पता नहीं है
तुम्हें देखा तो इक तमन्ना की है
तुम कहो ख़ता इसे तो हाँ ख़ता की है
ज़िन्दगी बेवजह बेमक़सद थी
तुमने मुझे जीने की वजह दी है
तुमको चाहा तुम्हारी चाहत की है
तुमसे ही पहली मोहब्बत की है
न दिन ही ढला और न रात ही ढली
न कोई ग़म है मुझको’ न ख़ुशी है
खुश्क हैं आँखें मेरी उसी तरह से
और पैरों तले रेतीली ज़मीं है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४