फूलों-सा रंग है उसका क्या कहना
देखे बिना उसको हम मर जायें ना
परदेसी वह दूजे नगर का अन्जाना
दिल ढूँढे इश्क़ फ़रमान-सा नज़राना
जैसे पैरों में हो सर्द गीली मिट्टी
वह कुछ इस तरह से हमको मिली
वह शाम का चराग़ थी, चाँद थी
जिसने मेरे दिल में उन्स किया
ओ मेरे रब्बा वह कौन-सी कायनात है
जिसने उसको अपना हुस्न दिया
वह आयत है मेरी मैं उसका गुलबदन
महकते रहते हैं दिलों के गुलशन
परदेसी वह दूजे नगर का अन्जाना
दिल ढूँढ़े इश्क़ फ़रमान-सा नज़राना
वह मौसम थी बहार थी फ़ज़ा थी
मेरे हसीं ख़ाबों की रंगीन क़ज़ा थी
जिसने दिल की हर शै में नूर किया
रस्मों के थे वह सारे फ़ासले
जिन्होंने हमें एक-दूजे से दूर किया
अकेले रहने को मजबूर किया
दिल में जाने कैसी रहती है उलझन
कब मिलोगे हमसे बताओ जानेमन
फूलों-सा रंग है उसका क्या कहना
देखे बिना उसको हम मर जायें ना
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२